पाठ का नाम -बाल गोविंद भगत
लेखक का नाम- रामवृक्ष बेनीपुरी
पाठ विद्या- रेखा चित्र
पाठ का सारांश
बालगोबिन भगत मझौली कद, गोरे पतले थे। उम्र साठ के पाके बाल दाढ़ी लेकिन साधुओं की तरह जटा जूट नहीं रखते थे। एक लंगोटी तथा सिर पर कबीरपंथी, जाने के समय एक काली कंबल ओढ़ लेते। ललाट पर सदैव राम नंदी चंदन, गले में तुलसी माला उनको वैष्णव होने का संकेत था। बालगोबिन एक गृहस्थ है। बेटा तू तो सभी उनके घर में थे। कुछ खेती बारी भी थी, जिसे वे परिश्रम पूर्वक किया करते थे।
वह कबीर को अपना आदर्श मानते थे, वही उनके मालिक थे।
कबीर को साहब मानते थे। खेत में जो ऊपर सारे होते थे उसे माथा पर रखकर साहब के दरबार में दे आते थे। फिर प्रसाद मानकर उपयोग के अनुकूल अन्य लाया करते थे। वे गृहस्थ होकर भी एक महान साधु थे।क्योंकि वह किसी का कुछ नहीं छूटे यहां तक दूसरों के खेत में शॉर्टकट नहीं करते। किसी से झगड़ा नहीं करते लेकिन दो टुक बात करने में संकोच नहीं करते
वे सदैव कबीर के दोहे या पद गाते दिखते थे।आसाम में धान रोपते समय भादो में आधी रतिया कार्तिक में प्रभावती और गर्मी के दिनों में संध्या गीत से परिवेश मुक्त होते रहते थे। कुछ प्रेमी भी थे जो मंडली के रूप में बाल गोविंद भगत के भजन में साथ देते थे।बाल गोविंद भगत अपने प्रेमी मंडली के साथ इतना आनंद विभोर हो जाते की अगली बजाते बजाते हुए नाचते थे और जाते भी थे।यह तो कुछ भी नहीं है इसका उत्कर्ष तो उस दिन देखा गया जिस दिन बाल गोविंद भगत के बेटा की मृत्यु हो गई उस दिन वह खंजरी बजा रहे थे और नाच रहे थे। आओ पुतोह उसे कह रहे थे कि खुशी मनाओ यह खुशी का दिन है। क्योंकि एक आत्मा परमात्मा से मिल गया है और इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है।
कि वह अपने बेटा को बहुत मानते थे। क्योंकि उनका बेटा शूज और बोधा जैसा था।
बेटा के बेटा कि मुखाग्नि उन्होंने पुत्रों से ही दिलवाए।उनका मानना था कि शादी के बाद यह एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं। यानी औरत के पति पर पूर्ण अधिकार और पति को औरत पर पूर्ण अधिकार यही सोचकर उन्होंने अपने पुत्रों से ही मुखाग्नि दिलवाए यह कर्तव्य इन के सच्चे कर्तव्य को दिखाता है।
बेटा के श्राद्ध कर्म करने के बाद पुतोह के भाई को बुलाकर साथ कर दिया और आदेश देते हुए का इसकी दूसरी शादी कर देना। बहूअत्यंत सुशील थी रो रो कर कहती रही, मैं चली जाऊंगी तो बुढ़ापे में आपको खाना कौन बनाएगा। बीमार पड़ने पर पानी कौन देगा। लेकिन बालगोबिन भगत का निर्णय अटल था उसने कहा तू चली जा नहीं तो मैं इस घर से चला जाऊंगा। बेचारी चली जाती है।
बाल गोविंद भगत हर वर्ष 30 कोस पैदल चलकर गंगा स्नान जाते लेकिन रास्ते में कुछ नहीं खाते केवल पानी पीकर वापस घर आकर ही खाते। इस बार जब वे लौटे तो सुस्त पड़ गए। बीमार पड़ गए। लेकिन स्नान पूजा संगीत साधना खेती-बाड़ी कुछ भी नहीं छोड़ा।1 दिन लोगों ने शाम का संगीत सुना लेकिन प्रातः कालीन संगीत नहीं सुनकर बाल गोविंद भगत के पास जाते हैं तो देखा बाल गोविंद भगत मृत शरीर में पड़ा है। इस दुनिया छोड़कर चला गया।
1 बालगोबिन भगत गृहस्थ थे। फिर भी उन्हें साधु क्यों कहा जाता था?
उत्तर- बालगोबिन बेटा बहू वाले गृहस्थ थे लेकिन उनका आचरण साधु जैसा था। यदि कोई जटा जूट बढ़ा ले तो साधु नहीं हो सकता। वस्तुतः साधु वह है जो आचरण में शुद्धता रखता है।बाल गोविंद भगत के दिन चार्य कर्तव्य निष्ठा और आत्मज्ञान में साधु बना दिया था।
2 भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं किस तरह व्यक्त की?
उत्तर- भगत ने अपने बेटी की मृत्यु पर विलाप नहीं करते दिखे। बल्कि मगन हो गीत गा रहे थे उनकी भावना का वह चरम उत्कर्ष था। वह अपने बहू से कहते थे आनंद मनाओ। एक आत्मा परमात्मा से जा मिला है।उनकी भावना थी की मृत्यु के बाद आत्मा परमात्मा से मिल जाता है जो आनंददायक बात है। इस भावना को वे संगीत से तथा बहू को एक साथ सच्चा ज्ञान देकर भावना को व्यक्त कर रहे थे।
3 पुत्रवधू द्वारा पुत्र की मुखाग्नि दिलवाना भगत के व्यक्तित्व की किस विशेषता को दर्शाता है?
उत्तर- विवाह के बाद पति पर पत्नी का सबसे अधिक अधिकार है। पत्नी का भी कर्तव्य सबसे अधिक पति के प्रति ही होता है। गृहस्थ आश्रम में दोनों एक दूसरे के पूरक है। अतः पतोहू को सबसे बड़ा अधिकारी मान उसी से मुखाग्नि दिलवाया। यह कार्य भगत के व्यक्तित्व की सच्चाई और महानता को दर्शाता है।
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