पाठ का नाम -बिहारी के दोहे
पाठ विद्या- कविता
लेखक का नाम -बिहारी
मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय.....
भावार्थ -इस दोहा में कवि बिहारी ने श्री राधा से प्रार्थना करते हैं कि राधा नागरि मेरी सांसारिक बाधाओं को दूर करें, जिनके शरीर की छाया पड़ने से भगवान श्री कृष्ण का श्यामला सौंदर्य हरित वर्ण की आभा को प्राप्त कर लेता है।
जप माला छापा तिलक सरे न एको कामू.....
भावार्थ -इस दोहा में कवि ने सत्य की महत्ता बताते हुए कहते हैं। माला पर जप करने से या माथे पर तिलक लगाने से कुछ नहीं होता है कोई कार्य से नहीं होता है। जिसके मन में खोट होता है उसके सारे कार्य बेकार हो जाते हैं जो सच्चा व्यक्ति है उस पर ही राम प्रसन्न होते हैं।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय.....
भावार्थ - इस दोहा में भगवान श्री कृष्ण और राधा के प्रेम को दिखाते हुए कवि ने कहा है कि।
श्री भगवान कृष्ण से वार्तालाप रुपए आनंद की प्राप्ति के लिए कृष्ण की मुरली छुपा देते थे। कृष्ण को जब राधा पर शक होता है तो वह नहीं कहते। जब कृष्ण राधा को शपथ देते हैं तो वह हंसने लगती है और जब कृष्ण मांगते हैं तो राधा मुरली देने से मुकर जाती है।
जब जब वह शुद्ध कीजिए तब तक सुधीर जाहि ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
भावार्थ- इस दोहा में कवि ने भक्त और भगवान की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है कि भगवान जब भक्तों की सूची लेकर कृपा करते हैं तो उनके कृपा पाकर अचेत हो जाता है। जिससे भगवान की सूची भक्तों को प्राप्त हो जाता है। जब भगवान भक्तों को देखते हैं तो भक्ति की आंखें ही बंद हो जाती है।
नर की अरु नल नीर की गत एकौ करी जोय...
भावार्थ- इस दोहे में कवि बिहारी ने मनुष्य और नल के दल की तुलना उपमा अलंकार के माध्यम से देते हुए कहते हैं। मनुष्य और नल के जल की एक गति है। मनुष्य जितना ही विनम्र होता है उतना ही वह समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करते जाता है। इसी प्रकार नल जितना नीचे रहता है उसके जल की स्थिति उतना ही तो तेज होती है।
संगति सुमति नापा वहीं पड़े कुमति के धंध...
भावार्थ- इस दोहे में बिहारी ने सत्य संगति की ओर ध्यान दिलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि मनुष्य अच्छे व्यक्ति की संगति नहीं पाकर पूरे आश्रम में लग जाता है ऐसे लोगों को सुधारना मुश्किल हो जाता है चाहे हम जितना भी प्रयास क्यों ना कर ले। वे वैसा ही बन जाते हैं। जैसे हींग को कपूर में रख देने के बाद भी हींग में कपूर का सुगंध नहीं आ सकता है।
बड़े ना हूजै गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाय....
भावार्थ- इस दोहा में बिहारी ने गुणवान बनने को कहते हुए कहा है कि जिसके पास गुण नहीं है उसका गुणगान कितना भी हम करें वह महानता को नहीं प्राप्त कर सकता। जैसे धतूरा को कनक की संज्ञा तो दे सकते हैं लेकिन उससे कहना नहीं बनाया जा सकता है।
दीर्घ सांस न लेहूं दुख, सुख साईं हि न भूल....
भावार्थ- इस लोहा में कवि ने मनुष्य दुख और सुख में एक समान रह कर ईश्वर का स्मरण करने की सलाह देते हुए कहते हैं। दुख में आह भरते हुए लंबी सांस मत लो और सुख में मालिक को भी मत भूलो। दुख के समय भगवान भगवान क्यों करते हो जो भगवान ने दिया है चाहे सुख हो या दुख हो उसे समान रूप से स्वीकार करो
प्रश्न अभ्यास ।
1 उन पदों को लिखिए जिसमें निम्नलिखित बातें कही गई है
क) बाहियाडंबड व्यर्थ है
ख) नर्मदा का पालन करने से ही मनुष्य श्रेष्ठ बनता है।
ग) बिना उनके कोई बड़ा नहीं होता।
घ) समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।
2. दुर्जन का साथ रहने से अच्छी बुद्धि नहीं मिल सकती। इसकी उपमा में कवि ने क्या कहा है?
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