पाठ का नाम - कर्मवीर
लेखक का नाम - अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
पाठ विद्या - कविता
1 देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
राह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं।।
काम कितना ही कठिन हो किंतु उकताते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाता नहीं।।
हो गए कान में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वही मिले फूले फले।।
भावार्थ- कर्मवीर अनेक बाधाओं और परेशानियों को देखकर नहीं घबराते। विभाग के भरोसे कभी भी नहीं बैठते और दुख भोकर नहीं पछताते हैं। काम कितना ही कठिन हो वह कभी उकताते नहीं। भीड़ में चंचल बनकर अपनी वीरता नहीं दिख लाते हैं उनकी एक आन (प्रतिज्ञा) से बुरे दिन भी अच्छे दिन में बदल जाते हैं।
2 आज करना है जिसे करते उसे आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।।
मानते हैं जी की है, सुनते हैं सदा सबकी कहीं।
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही।
भूल कर वह दूसरे के मुंह कभी तकते नहीं।
कौन ऐसा काम है जिसे वह कर सकते नहीं।।
भावार्थ- कर्मवीर आज का काम आज ही कर लेते हैं यह कल के भरोसे पर नहीं रहते हैं। वह जो सोचते हैं वही कहते हैं तथा कहे हुए को करते भी हैं।वह सब की बात सुनते हैं लेकिन जब उनका मन जो कहता है वह वही करते हैं।कर्मवीर अपनी मदद सुनाएं करते हैं और भूल कर भी किसी के मुंह नहीं सकते।
3 जो कभी अपना सुना को यूं बिताते है नहीं।
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं।।
आजकल करते हुए जो दिन घर आते हैं नहीं।
यत्न करने में कभी बजे चुराते हैं नहीं।।
बैठे लोगों ने जो होती नहीं उनके किए।
यह नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।।
भावार्थ- कर्मवीर अपने समय को व्यर्थ नहीं दिखाते काम करने की जगह बातें नहीं बनाते हैं। वह काम करने के बाद ही सुकून पाते हैं। किसी भी काम को कल के लिए नहीं डालते हैं। वह परिश्रम करने से कभी नहीं घबराते । ऐसी कोई काम नहीं है जो उनके करने से नहीं होता वह समाज में उदाहरण समय बन जाते हैं।
4 चिलचिलाती धूप को जो चांदनी देदे बना।
काम पड़ने पर करे जो शेर का भी सामना।।
जो कि हंस हंस के चला लेते हैं लोहे का चना।
उस कितने ही चले पर वे कभी थकते नहीं।कौन सी है गांठ जिसको खोल दे सकते नहीं।।
भावार्थ- चिलचिलाती धूप भी उनके लिए चांदनी बन जाती है। काम पड़ने पर वे शेर का भी सामना कर लेते हैं। वे हंस-हंसकर कठिन से कठिन काम कर लेते हैं। जो ठान लेते हैं उनके लिए कठिन वह कठिन काम नहीं रह जाता है। करने के बाद भी वे थकते नहीं। कौन ऐसी समस्या है जिसे कर्मवीर सुलझा नहीं लेते।
5 काम को आरंभ करके वह नहीं जो छोड़ते।
सामना करके नहीं जो भूल कर मुंह मोड़ते।।
जो गगन के फूल बातों से वृद्धा नहीं तोड़ते।
संपदा मन में से करोड़ों की नहीं जो जोड़ते।।
बन गया हीरा उन्हीं के हाथ से है कार्बन।
कांच को करके दिखा देते हैं वह उज्जवल रतन।।
भावार्थ- कर्मवीर जिस काम को आरंभ करते हैं उसे बिना किए हुए नहीं छोड़ते। जिस काम को करने लगते उससे भूल कर भी मुंह नहीं मोड़ते। वे आकाश सुमन तोड़ने जैसी विधा बातें नहीं करते हैं। करोड़ों की संपत्ति हो जाए लेकिन वह मन में कभी अहंकार नहीं लाते हैं घमंड नहीं होता है उन्हें। कर्मवीर के हाथ में कोयला भी हीरा बन जाता है। शीशा को भी चमकीला रत्न बना देते हैं।
6 पर्वतों को काटकर सड़के बना देते हैं वे।
सैकड़ों मरुभूमि में नदियां बहा देते हैं वे।।
गर्भ में जल राशि के बेरा चला देते हैं वे।
जंगलों में भी महामंगल मचा देते हैं वे।।
भेद नवतल का उन्होंने है बहुत बतला दिया।
है उन्होंने ही निकाली तार की सारी क्रिया।।
भावार्थ- कर्मवीर पर्वतों को काटकर सड़के बना देते हैं। मरुभूमि में भी सैकड़ों नदियां बहा देते हैं। समुंद्र के घर में भी जलयान चला देते हैं। जंगल में भी वे मंगल रचा देते हैं। आकाश पाताल का रहस्य भी उन्होंने ही बतलाया है हमें। सूक्ष्म से सूक्ष्म क्रिया के बारे में उन्होंने ही बतलाया है।
7 कार्यस्थल को वह कभी नहीं पूछते वह है कहां।
कर दिखाते हैं असंभव को भी वह संभव वहां।।
उलझाने आकर उन्हें पड़ती है जितनी ही जहां।
वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहां।।
डाल देते हैं विरोधी सैकड़ों ही अर्चने।
वे जगह से काम अपना ठीक करके ही टले।
भावार्थ- कर्मवीर कार्यस्थल के बारे में नहीं पूछते। किसी भी स्थल पर असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाते हैं। जहां उन्हें अधिक उलझने दिखाई देती है वहां वे अपने कार्य को और भी अधिक उत्साह से करते हैं। विरोधी उनके कर्म मार्ग में भले ही सैकड़ों अर्चना डाल दे लेकिन वह अपना कार्य पूरा करके ही निकलते हैं।
8 सब तरह से आज जितने देश है फूले फले।
बुद्धि, विद्या, धन, विभव के हैं जहां डेरे डालें।।
वे बनाने से उन्हीं के बन गए इतने भले।
वे सभी है हाथ से ऐसे सपूतों के प्ले।
लोग जब ऐसे समय पाकर जन्म लेंगे कभी।
देश की जाति की होगी भलाई तब कभी।।
भावार्थ-आज संपन्न जितने देश है जो बुद्धि विद्या धन संपदा से परिपूर्ण देश है। उन देशों को संपन्न बनाने में कर्म वीरों का ही हाथ है। जिस देश की जितनी उन्नति हुई है उन देशों में उतने ही कर्मवीर है। जिस देश में जितने कर्मवीर पैदा लेंगे उतना ही उस देश और समाज की भलाई होगी।
प्रश्न अभ्यास
1 कर्मवीर की पहचान क्या है?
उत्तर कर्मवीर विघ्न बाधाओं से घबराते नहीं वे भाग्य भरोसे नहीं रहते। कर्मवीर आज के कार्य को आज ही कर लेते हैं।जैसा सोचते हैं वैसा ही बोलते हैं तथा जैसा बोलते हैं वैसे ही करते हैं। कर्मवीर अपने समय को व्यर्थ नहीं जाने देते । कर्मवीर समय का महत्व सदैव देते हैं। मैं परिश्रम करने से जी नहीं चुराते। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कठिन कार्य कर दिखाते हैं। कर्मवीर कार्य करने में थकते नहीं है। जिस कार्य को आरंभ करते उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। उलझाना के बीच भी वे उत्साहित दिखते हैं।
2 अपने देश की उन्नति के लिए आप क्या क्या कीजिएगा?
उत्तर-अपने देश की उन्नति के लिए हम कर्मनिष्ठ बनेंगे। समय का महत्व देंगे। मन वचन कर्म तीनों से एक रहेंगे।कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबरा आएंगे। जिस कार में हाथ डाल लेंगे उसे करके ही दम लेंगे। आलस से कभी नहीं करेंगे और कभी भी अपने कार्य को कल के भरोसे नहीं डालेंगे।
3 आप अपने को कर्मवीर कैसे साबित कर सकते हैं?
उत्तर-हमें अपने को कर्मवीर साबित करने के लिए कर्तव्यनिष्ठ बनना होगा। समय का महत्व हमें देना होगा। परिश्रमी बनना पड़ेगा तथा आलस्य को त्यागना होगा। मन वचन और कर्म तीनों से एक रहना होगा। उपरोक्त कर्मवीर के गुणों को अपने में उतार कर हम अपने को कर्मवीर साबित कर सकते हैं।
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