पाठ का नाम- अशोक का शस्त्र त्याग
लेखक का नाम - वंशीधर श्रीवास्तव
पाठ विद्या -एकांकी
पाठ का सारांश
स्थान -मैदान जिसमें मगध के सैनिकों का शिविर है। बीच में एक पताका फहरा रहे वहीं पर सम्राट अशोक का शिविर है। संध्या बीत चुकी है। तारे चमकने लगे हैं। दीपक जल रहे हैं। अशोक टहलते हुए देखते हैं उनके मुख पर चिंता की छाया है। कुछ सोचते हुए आसन पर बैठ जाते हैं।
अशोक सोचते हुए-) 4 साल से युद्ध हो रहा है। लाखों मारे गए, लाखों घायल हुए लेकिन कलिंग नहीं जीता जा सका । उसी समय द्रुपाल गुप्त चर आकर संवाद देता है कि कलिंग के महाराज लड़ाई में मारे जा चुके हैं। लेकिन कलिंग के दरवाजा अभी भी बंद है।
अशोक उत्तेजित होकर काल शिवसेना का संचालन करते हैं।
मगध की सेना कलिंग के द्वार पर अस्त्र-शस्त्र से सजी है और सेनाओं को कलिंग विजय या मृत्यु प्राप्त करने को ललकारते
है। उसी समय फाटक खुलता है हजारों की स्त्रियां वीर वेश में द्वार से बाहर हो मगध की सेना को चुनौती देती है। लेकिन सम्राट अशोक स्त्रियों पर हाथ उठाना उस से युद्ध करना उचित नहीं मानकर शस्त्र त्याग कर युद्ध नहीं करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।
पदमा भी उन्हें क्षमा कर देती है और कहती है कि मैं निहत्था पर वार नहीं करती और अशोक को छोड़ देती है। अशोक बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेते हैं।
Q1 पदमा के ललकार ने पर भी अशोक ने युद्ध करना स्वीकार क्यों नहीं किया
उत्तर पदमा स्त्रियों की सेना लेकर युद्ध के लिए ललकार रही थी। लेकिन अशोक ने युद्ध स्वीकार नहीं किया क्योंकि अशोक स्त्रियों पर हाथ उठाना पाप मानते थे। स्त्रियों के साथ पुरुष का युद्ध करना शास्त्र में अनुचित कहा गया है।
Q2 पदमा को अशोक से बदला लेने का अच्छा अवसर था तब तब भी उसे जीवित क्यों छोड़ दिया।
उत्तर-पदमा के सामने सम्राट अशोक नतमस्तक थे। वेद शास्त्र का त्याग कर चुके थे तथा प्रण कर लिया कि आगे कभी युद्ध नहीं करूंगा
वीर सैनिक कभी भी निहत्था पर वार नहीं करते इसीलिए पदमा अवसर पाकर भी अशोक से बदला नहीं लेकर जीवित छोड़ दिया।