परिचय
सादगी सरलता और सच्चाई की मूर्ति डॉ राजेंद्र प्रसाद सच्चे अर्थों में भारत रत्न थे। उनका तन मन धन सब जन जीवन को समर्पित था। भारत के प्रथम राष्ट्रपति। डॉ राजेंद्र प्रसाद
डॉ राजेंद्र प्रसाद के बचपन
राजेंद्र बाबू का जन्म बिहार के सिवान जिला के एक छोटे से गांव जीरादेई में 3 दिसंबर 1884 ईसवी को हुआ। इनके पिता महादेव सहाय साधु प्राकृतिके व्यक्ति थे। प्रारंभिक शिक्षा घर पर होने के बाद औपचारिक शिक्षा छपरा स्कूल हथुआ ईडेन स्कूल और टीके घोष अकैडमी पटना में हुई।
मैट्रिक की परीक्षा में हुए प्रथम आए। उन दिनों बिहार बंगाल और उड़ीसा तथा आसाम के छात्रों का एक ही विश्वविद्यालय था कोलकाता विश्वविद्यालय। मैथिली के बाद कोलकाता में शिक्षा प्राप्त की और वहां से वकालत पास कर वकालत करने लगे। जब पटना में हाईकोर्ट हुआ तो पटना चले आए।
राजेंद्र प्रसाद के कैरियर
राजेंद्र बाबू वकालत की पढ़ाई करके बैरिस्टर बने । राजेंद्र बाबू की वकालत चल निकली थी कि गांधीजी चंपारण आए। फिर तो चंपारण आंदोलन में कूद पड़े वकालत छोड़ दे और आजादी के सिपाही बन गए। अनेक बार जेल गए तकलीफ ही सही लेकिन उनको नहीं मोड़ा। जब बिहार में सन 1934 ईस्वी में भूकंप हुआ तो राजेंद्र बाबू ने लोगो की सेवा में जी जान लगा दिया। या अनेक बार कांग्रेस के महामंत्री और अध्यक्ष भी चुने गए। और जब देश आजाद हुआ तो केंद्र में खाद्य मंत्री बने
राजेंद्र प्रसाद आजादी के बाद
आजादी के बाद जब देश का संविधान बना और गन तांत्रिक संविधान लागू हुआ तो राजेंद्र बाबू देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए। इस पद पर या लगभग 12 वर्षों तक से शोभित रहे और अपनी प्रतिभा सरलता और सत्यनिष्ठा से लोगों का दिल जीता। राष्ट्रपति भवन में भी एक संत की तरह ही थे। सन 1993 ईस्वी में राष्ट्रपति पद से मुक्त होकर यह पटना के सदाकत आश्रम के पास आकर रहने लगे। वहीं उन्होंने फरवरी 1963 ईस्वी में आखिरी सांस ली। आज राजेंद्र बाबू हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका आदर्श उनकी सेवाएं और लगन हमारे धातु और सदा जीवन उच्च विचार का पाठ पढ़ाते हैं आज राजेंद्र बाबू हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका आदर्श उनकी सेवाएं और लगन हमारे हाथ से और सादा जीवन उच्च विचार का पाठ पढ़ाते हैं।
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