परिचय:-
अबुल कलाम ग़ुलाम मुहियुद्दीन, जिन्हें हम मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नाम से जानते हैं, एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, पत्रकार व विद्वान थे। उनका विश्वास था कि आम लोगों को सद्भाव, एकता और शिक्षा के ज़रिए ही सशक्त बनाया जा सकता है।
जन्म
आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का में हुआ था। उनके पिता भारतीय और माँ अरबी थीं। पिता मौलाना खैरुद्दीन साल 1890 में परिवार के साथ भारत लौट आए और कलकत्ता में बस गए। आज़ाद को बचपन से ही किताबों से लगाव था। 12 साल की उम्र से वह बाल पत्रिकाओं में अपने लेख लिखने लगे थे।
आज़ाद ने कम उम्र में ही उर्दू शायरी के अलावा धार्मिक व दार्शनिक ग्रंथों की रचना शुरू कर दी थी। इन्हीं को लिखने के लिए उन्होंने ‘आज़ाद’ उपनाम अपनाया था।
शिक्षा और करियर
साल 1912 में आज़ाद ने अल-हिलाल नाम की एक पत्रिका निकालनी शुरू की, जो अपने क्रांतिकारी लेखों की वजह से चर्चा में रहती। कुछ वक़्त में ही ब्रिटिश सरकार ने भारी जुर्माना लगाकर इसे बंद करवा दिया।
शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के योगदानों के बारे में हम जितना बताएं, उतना कम होगा। वह स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने थे। राजनीति, इतिहास और भाषाओं पर गहरी पकड़ रखने वाले आज़ाद का यह मानना था कि शिक्षा ही किसी भी देश को उन्नति की ओर ले जा सकती है।
शिक्षा मंत्री के रूप में जिस मुद्दे पर उन्होंने सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया वह था- लड़कियों व ग्रामीण इलाकों में रह रहे ग़रीब लोगों की शिक्षा। आज़ाद ने लोगों के लिए 14 साल की उम्र तक मुफ़्त शिक्षा का भी समर्थन किया।
1945 में आज़ाद ने 'अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद' की स्थापना की। इसके अलावा साहित्य अकादमी जैसे कई संस्थानों की नीव उन्होंने ही रखी थी। उनके नेतृत्व में ही दिल्ली में केन्द्रीय शिक्षा संस्थान को देश की शैक्षिक समस्याओं को हल करने वाला संस्थान बनाया गया। 1953 में यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेंट्स कमिशन और IIT की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
1948 मे हुए अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन में आज़ाद ने कहा था,
“हमें एक पल के लिए भी यह भूलना नहीं चाहिए कि प्राथमिक शिक्षा पाना हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसके अभाव में वह एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पाएगा।”
आज़ाद को 1992 में भारत रत्न से नवाज़ा गया था। इसके अलावा, उनके जन्म दिवस को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई!
अगर आसमान से कोई फरिश्ता उतर कर आए और कहे के तुम्हें स्वराज अभी मिल जाएगा इस शर्त के साथ के तुम हिंदू-मुस्लिम एकता से अलग हो जाओ तो मैं कहूंगा मुझे ऐसा स्वराज नहीं चाहिए जो हिन्दू-मुस्लिम की एकता के कीमत पर हो
स्वराज तो हमे जल्द या देर से प्राप्त हो जाएगा
लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकता खंडित हो जाने से सारी मानवता का घाटा होगा।
मौलाना अबुल कलाम आजाद