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पाठ का नाम: - चिकित्सा का चक्कर

लेखक का नाम:-बेढब बनारसी


                                 पाठ का सारांश

लेखक हटा कटा आदमी है। उनको देखने से कोई रोगी नहीं कह सकता था। 35 वर्ष की आयु तक उनको कोई बीमारी ना हुई। लेखक को बड़ी इच्छा है कि मैं भी बीमार पड़ता तो अच्छा होता। बीमार पड़ने पर हंटले बिस्कुट अवश्य मिलता तथा पत्नी अपने कोमल हाथों से तेल भ मालिश करती। मित्र लोग आते रोनी गंभीर मुद्रा में कुछ पूछते तो बड़ा मजा आता।

 एक दिन जब लेखक हॉकी खेल कर आए आज मैच था मैच में रिफ्रेशमेंट अधिक खा लेने के कारण भूख नहीं थी परंतु पत्नी ने सिनेमा जाने की बात बताकर थोड़ा 12 पूरिया और आधा पाव मलाई। फिर 6:30 बड़े-बड़े रसगुल्ले खा कर सो गए।

रात 3:00 बजे जब उनकी नींद खुली तो नाभि के नीचे दाहिने और दर्द का अनुभव हुआ। लेखक अमृताधारा लेकर बार-बार पीते रहे लेकिन दर्द नहीं गया। प्रातकाल सरकारी डॉक्टर साहब इक्के पर सवार होकर आए। जीव देख कर कहा घबराने की कोई बात नहीं दो खुराक दवा पीते पीते दर्द इस तरह गायब हो जाएगा जैसे भारत से सेना गायब हो रहा है। डॉक्टर साहब दवा मांग कर पीने तथा बोतल से सेकन की बात बताएं।

दवाखाने या सीखने से लेखक को कोई आराम नहीं मिला, हां गर्म बोतल से सीखते सीखते छाले अवश्य पड़ गए।

मिलने वाले लोगों के तोता लगने लगे। जो आते अपने नुक्से बताते किसी ने हींग खिलाई तो किसी ने चुने खाने को कहा। जितने लोग आए उतनी ही बात बताएं। लेखक के विचार से समूह ने कुछ कुछ बता दिया। मात्र जूता खाने की बात किसी ने नहीं बताई। 3 दिन बीत गए। लेकिन दर्द दूर नहीं हुआ। लोग मिलने आते विभिन्न प्रकार के लोग विभिन्न कवियों लेखकों की बात पूछ पूछ कर परेशान करते पान सिगरेट से भी लेखक को चूना लगा रहे थे।

दूसरे डॉक्टर से दिखाने की सलाह भी देते थे फिर विचार विमर्श कर चूहा नाथ कतर जी को बुलाया गया। जो लंदन से F.R.C S की डिग्री प्राप्त कर चुके थे। डॉक्टर चूहा नाथ सुई दिया। जिससे लेखक का दर्द दूर हुआ।

कुछ दिनों के बाद लेखक चूहा नाथ पत्र जी मिलने गए। वहां अनेक रोगों की बात चली। जिसको सुनकर लेखक को 1 सप्ताह बीतने पर ऐसा लगता था मानव वह सारी बीमारियां के लक्षण लेखक को होने वाला हो। हो भी गया लेखक को बड़ी बेचैनी थी पुनः एक आयुर्वेदाचार्य को बुलाया गया।

जो ग्रह नक्षत्र और तिथि को विचार कर विलंब अन से आए। नारी छूकर बोला। वायु का प्रकोप है, यकृत में वायु घूम कर पित्ताशय के माध्यम से आंख में जा पहुंचा जिससे खाना नहीं पचता तथा सुरभि होने लगता है। आयुर्वेद आचार्य पंडित सुखराम शास्त्री जी ने चरक और सुरूतू क श्लोक भी सुनाएं। तब जाकर दवाइयां दी। लेखक को दर्द में कुछ कमी अवश्य हुई लेकिन रह-रहकर दर्द हो ही रहा था। मानो C.I.D पीछा ना छोड़ रहा हो।

एक दिन एक सज्जन मित्र ने हकीम से दिखलाने की बात बताइए। हकीम साहब को बुलवाया गया। जिनके फैशन की चर्चा अत्यंत व्यंग्यात्मक ढंग से किया गया। हकीम साहब ने जब लेखक से मिजाज के बारे में पूछा तो लेखक ने कहा मर रहा हूं बस आपका इंतजार है। हकीम साहब मरने की बात नहीं करने की सलाह देते हैं तथा आनन-फानन में दर्द दूर होने वाली दवा देने की बात करते हैं।

लेखक ने कहा अब आपकी दुआ है आपका नाम बनारस कि नहीं हिंदुस्तान में लुकमान की तरह मशहूर है। हकीम साहब भी नव देखकर नुक्से लिखकर दवाई मंगवाते हैं।

लेखक का दर्द तो अवश्य कम हो गया लेकिन दुर्बलता बढ़ती गई कभी कभी तो दर्द का एहसास था कि सब लोग परेशान होते। कुछ लोगों ने लखनऊ जाकर इलाज कराने के बाद तो कोई एक्सरे कराने की बात तो किसी ने जल चिकित्सा करवाने की बात बताई एक ने कहा कुछ नहीं केवल होम्योपैथी इलाज करवाएं। होम्योपैथिक इलाज आरंभ हुआ लेकिन कुछ नहीं असर हुआ लेखक के ससुर जी ने भी एक डॉक्टर लाए उनसे भी इलाज हुआ।

1 दिन लेखक के 9 की मौसी आई और ऊपरी खेल बतलाई लेखक के आंख की  बरौनी देखते हुए गोली कोई चुड़ैल पकड़े हुई है अतः ओझा को बुलवाकर झाड़-फक करवा लो। लेकिन लेखक ओझा को नहीं भूल पाए

  सब के विचार से लखनऊ जाने की तैयारी हो गई। उसी समय एक मित्र ने एक डॉक्टर को बुला कर ले आए। उन्होंने मुख खुलवाया तथा कहा बात कुछ नहीं है। दर्द का कारण पायरिया है, इसी कारण दर्द है। दांत निकलवा लो सब दर्द दूर हो जाएगा। दांत के डॉक्टर से मिलकर खर्च सुनते ही लेखक को पेट दर्द के साथ-साथ सिर दर्द भी शुरू हो गया। कुल लगभग ढाई सौ खर्च था। लेखक ने जब पत्नी से पैसा मांगा तो पत्नी कहीं तुम्हारी बुद्धि घास चरने गई है। जो जैसा कहें वैसा करो, तभी बात करवाओ कोई कहे तो नहीं न्यू चुरा लो। मैं तो करती हूं खाना ठीक करो ठिकाने से खाओ तो 15 दिन में सब ठीक हो जाएगा। लेखक ने कहा तुम्हें अपनी दवा करनी थी तो इतने पैसे क्यों खर्च करवा दी।


                                     प्रश्न अभ्यास

Q1 लेखक को बीमार करने की इच्छा क्यों हुई?

   उत्तर: -लेखक बेढब बनारसी जी कभी बीमार नहीं पड़ते थे। शरीर भी स्वस्थ दिखाई पड़ता था। लेकिन उनकी इच्छा थी कि मैं बीमार पढ़ो तो मजा आएगा। हटने बिस्कुट खाने को मिलेगा। पत्नी अपने कोमल हाथ से सिर पर तेल मिलेगी। मित्रगण आएंगे, मेरे सामने रोनी सूरत बनाकर बैठेंगे या गंभीर मुद्रा में पूछेंगे बैठक जी कैसी तबीयत है, किस से इलाज करवा रहे हैं कुछ फायदा हो रहा है इत्यादि। इस समय लेखक को बड़ा मजा आता है इसीलिए हुए बीमार पड़ने की इच्छा करते थे।

Q 2 लेखक निवेद और हकीम पर क्या-क्या कह कर व्यंग किया? उनमें से सबसे तीखा व्यंग किस पर है उल्लेख कीजिए

लेखक ने वैद्य और हकीम पर विविध प्रकार से वयिंग दिया है वैध जी पर व्यंग करते हुए लेखक ने कहा है कि आयुर्वेदाचार्य, रशियन रंजन चिकित्सा मार्तंड कविराज पंडित सुखदेव शास्त्री जी को जब बुलाया गया तो वह पतरा को थी देख कर बोले तथा ग्रह नक्षत्र और तिथि के विचार कर कुछ देर में जाने के लिए हां भर दिए

वैध जी पालकी पर चढ़कर आते हैं। धोती गमछा और महिला कुचेला जनेऊ धारण किए हुए थे मानो अभी-अभी कुश्ती लड़ कर आए थे

हकीम-हकीम साहब पर व्यंग करते हुए लेखक उनके पहनावा और शान शौकत का वर्णन कर उन पर व्यंग कैसा है

Q 3 अपने देश में चिकित्सा की कितनी पद्धतियां प्रचलित है उनमें से किन-किन पद्धतियों से लेखक ने अपनी चिकित्सा कराई

हमारे देश में चिकित्सा के निम्नलिखित पद्धतियां प्रचलित है

एलोपैथिक, आयुर्वेदिक, होम्योपैथी, जल चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, दंत चिकित्सा, तंत्र मंत्र चिकित्सा

लेखक ने एलोपैथिक, आयुर्वेदिक, हकीमी इत्यादि सदस्यों से अपना इलाज कराई


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