दहेज़ प्रथा एक अभिशाप।dahej pratha par nibandh।

 

Essay 

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दहेज: एक सामाजिक कलंक दहेज समस्या और समाधान अथवा दहेज प्रथा एक अभिशाप


परिचय:- 

 दहेज प्रथा भारतीय जनता और समाज के माथे पर कलंक का सबसे बड़ा टिका है। इस दैत्य में न जाने कितनी युवतियों को कुमारी रहने पर मजबूर किया है, कितने घरों को बर्बाद किया है और न जाने कितनी कन्याएं इसकी इसकी वलीदेवी पर जली मरी है।

प्राचीन और वर्तमान स्वरूप और आधार: -

  वस्तुत :दहेज उसे कहते हैं जो पुत्री के विवाह में पिता की ओर से उपहार के रूप में दिया जाता है। पहले यह दहेज बाध्यता नहीं थी। लेकिन इन दोनों दहेज बात जाता है और दहेज के पास जाने पर ही विवाह किया जाता है। इस दहेज का आधार है लड़के के पिता की संपत्ति, लड़के की शिक्षा, नौकरी इस पर यदि लड़का सुंदर और गुणगान हो तो क्या कहना -जैसे सोने में सुहागा । लीजिए जितना दहेज आप लेना चाहते हैं। लगाइए बोली। बहुत से लोग तो अपने बच्चों को इसलिए पढ़ते हैं कि अधिक दहेज मिलेगा। आज दशा हुआ है कि दहेज निश्चित है। मजिस्ट्रेट डॉक्टर इंजीनियर की रानी चपरासी सबके भाव निश्चित है।

दहेज का परिणाम: - 

   सच्ची बात तो यह है कि दहेज अब प्रेम का उपहार नहीं, प्रतिष्ठा का सूचक है। जिनके पुत्र को जितना अधिक दहेज मिलता है वह उतना ही अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है। यही बात लड़की की और भी है। जो जितना अधिक दहेज देता है वह उतना ही इज्जतदार माना जाता है। इस प्रकार दहेज का यह दान दोनों ही पक्षों को समान रूप से खाता है।

सामाजिक कलंक :

यह सामाजिक कलंक है। आज देश के इस कलंक को मिटाने की जरूरत है। यह ठीक है कि इसे मिटाने के लिए उपदेश दिए जाते हैं लेकिन मर्ज बढ़ाया गया जियो जो दवा की भांति यह रोग सिर्फ कुछ होने वाला नहीं है। लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना कानून सिर्फ किताबों में रह जाएगा और आज तक यही हुआ है।

उपसंहार

   इस प्रथा को दूर करने के लिए नवयुवक नवयुवतियों को ही आगे आना पड़ेगा और यह प्रण करना होगा कि वह दहेज ना लेंगे और ना देंगे तभी यह कौन रीति रुकेगी और नहीं तो यह दानव भारतीय समाज को एक दिन खोखला बनाकर छोड़ेगा। परिणाम होगा कि अनित्य वी विचार तथा आत्महत्या के दलबदल में फंसा यह भारतीय समाज रसातल 

को चला जाएगा 

धन्यवाद



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